हुक़ूमत को हम अपने पाँव की ज़ंजीर लिक्खेंगे।।
अगर हमसे कोई पूछे ज़मीं पर है कहीं जन्नत।
क़लम की नोक से हम वादिये कश्मीर लिक्खेंगे।।
दिलों को जीतने का फ़न करो अशआर में पैदा।
तभी तो दौरे हाज़िर का तुम्हें हम मीर लिक्खेंगे।।
जो दावे से ये कहते थे कहाँ हैं आज राँझे वो।
किताबे इश्क़ में अपनी तुम्हें हम हीर लिक्खेंगे।।
जहां भर की रिवायत से अलग हटकर मिरे हमदम।
तुम्हारे प्यार की दौलत को हम जागीर लिक्खेंगे।।
जहां में जिसकी मेहनत से उजाला ही उजाला है।
भुलाकर नाम उसका 'यास्मीं' तनवीर लिक्खेंगे।।
डॉ. यासमीन मूमल "यास्मीं" - मेरठ (उत्तर प्रदेश)