इक दिन ये गुज़र जायेगा!
सुनो, मुझपर हंसने वालों,
अच्छा समय भी आयेगा!
राहों से मंज़िल दूर सही,
मैं थोड़ा सा मज़बूर सही!
आज घोर अंधेरी रातें हैं,
कल सूरज फिर आयेगा!
सौ बार गिरा, उठ जाऊंगा,
या तो फिर मैं मिट जाऊंगा!
या देखोगे जो पहचान मेरी,
मैं कुछ ऐसा कर जाऊंगा!
मैंने अपमानों के सायों में,
अपनों को बदलते देखा है!
उम्मीद का दामन छोड़ा ना,
इक दिन मंज़िल को पाऊंगा!
आज ख़ाली मेरे हाथ सही,
कोई भी ना मेरे साथ सही!
कल सारी दुनिया जानेगी,
मैं सारी ख़ुशियां पाऊंगा!
ख़्वाबों से शोहरत मांगी थी,
ये ख़्वाब हक़ीक़त बनाऊंगा!
आज आंसू पीकर जीता हूँ,
कल शहंशाह बन जाऊंगा!
कपिलदेव आर्य - मण्डावा कस्बा, झुंझणूं (राजस्थान)