आपकी यादें, ये दूरियां और ये अकेलापन,
असह्य पीड़ा देते हैं मुझे।
मस्तिष्क में एक अज्ञात हलचल,
है बढ़ा देते चित्त की उद्विग्नता को।
तथापि अंतःकरण घोर निराशा से आवृत।
तत्क्षण;
असंख्य विचार मस्तिष्क में प्रस्फुटित,
गतिमान जल में पानी के बुलबुले_सदृश,
है बनते_बिगड़ते।
ऐसे वीभत्स जीवन में खुशियों की खोज,
प्रतीत होता अंधेरे में शर_संधान सदृश।
अंतःकरण की विकलता_
फूलों में खुशबू,
पंक्षियों में मधुर गान...
शबनम रूपी मोती,
औे वर्षा का प्रथम जलकण,
जेठ की तपती धरती को आह्लादित नहीं कर सकता।
अतएव,
जीवन की निःसंगता,
कदाचित स्वच्छंदता दे दे।
अपितु दीर्घकालीन आनंदमयता,
कदापि नहीं दे सकती।।।
प्रवीन "पथिक" - कुसौरा बलिया (उत्तरप्रदेश)