सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)
महायोगी श्री कृष्ण - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मंगलवार, अगस्त 11, 2020
भगवान श्री कृष्ण ने गीता के माध्यम से जो उपदेश दिया आज भी प्रासंगिक है।
उनके उपदेश के अनुसार, बिना सोचे विचारे अपनी राय कहीं भी प्रकट नहीं करनी चाहिए। संभव है कि मित्र के भेष में कोई शत्रु ही हो।
यदि आपके बोलने व कार्य करने से समाज का भला हो रहा है तो वह कार्य करने से कदापि न हिचकें।
अन्याय का प्रतिरोध तो अवश्य करें।
यह सत्य है कि सभी लोग सभी तरह की परिस्थितियों का सामना नहीं कर पाते।
यदि आप अच्छे उद्देश्य से कोई कार्य करना चाहते हैं तो कोई कार्य करना चाहते तो सहयोग में कई सारे कदम अवश्य उठेंगे।
यदि साहस और समूह का साथ मिले तो असंभव को भी संभव किया जा सकता है।
पानी की हजारों धारा जब एक साथ गिरती है तो उस पर सामूहिक शक्ति के बल पर ही नदियां और तालाब भरते हैं।
श्री कृष्ण ने फल की चिंता किए बिना कर्म करने की शिक्षा दी।
तत्काल सफलता न मिले तो भी सच्चे मन से किया गया कार्य निष्फल नहीं होता, समय आने पर किसी न किसी रूप में अच्छा परिणाम सामने अवश्य आता है।
श्री कृष्ण का अनुसरण किया जाए तो कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक व सफल बना सकता है।
समाज में जब जब प्रेम, त्याग और परोपकार जैसे मानवीय गुणों का ह्रास होता है, अन्याय, अत्याचार, अधर्म जैसे अवगुणों की वृद्धि होने लगती है तो इससे संपूर्ण मानवता प्रभावित होती है। लेकिन बुराइयां अधिक समय तक नहीं टिकती यह अच्छाई से एक दिन अवश्य हार जाती हैं।
यह जीत सर्वश्रेष्ठ मानव सुनिश्चित करते हैं जो ईश्वर के प्रतिनिधि माने जाते हैं।
इन्हीं को अवतार कहा जाता है, इन्ही को भगवान माना जाता है।
जब धरती पर कंस, जरासंध, दुर्योधन जैसे दुष्ट राजाओं के अत्याचार बढ़े, लोलुपता, दुष्टता बढ़ी तो समाज को ऐसा महापुरुष को जरूरत हुई जो धरती पर जन्म लेकर अधर्मियों से धरा को मुक्त कर सके।
मगध नरेश जरासंध छोटे छोटे राजा को कैद कर उनके राज्य हड़प लेता था।
मथुरा के दुष्ट राजकुमार कंस ने बूढ़े पिता महाराज उग्रसेन को बंदी बना लिया था व स्वार्थपरता की हद तक जाने वाले दुर्योधन की घोर उद्दंडता चरम सीमा पर थी। समाज में बुराइयां इतनी बढ़ गई थी उन दिनों सज्जन लोग भी खुद को सुरक्षित करने के लिए अत्याचारियों से संधि करने लगे थे। लोगों की रुचि गलत कार्यों में होने लगी थी। अधर्म का नाश होने लगा था। द्रोणाचार्य जैसे विद्वान और ज्ञानी भी अधर्मी कौरवों के पक्ष में हो गए थे। ऐसे घोर संकट की स्थिति में संपूर्ण समाज एक ऐसे महापुरुष की राह देख रहा था जो अधर्म का नाश कर पुनः धर्म की स्थापना करें। तभी लोगों की अभिलाषा भाद्रपद की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण के जन्म के साथ पूरी हुई।
भगवान श्री कृष्ण ने सुन्दर समाज की स्थापना की।
गीता के माध्यम से उपदेश देकर विश्व में नव चेतना का नव प्राण का संचार किया जो आज भी प्रासंगिक है।
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