जिंदगी को न यूँ, बददुआ, कीजिये
बेख़ुदी में क़दम डगमगा गर गये।
फिर से उठके सम्भलकर चला कीजिये।
जिंदगी खौफ़ में ना गुज़र जाये यूँ।
हक़ की ख़ातिर ख़ुदी से लड़ा कीजिये।
खुद से रूठो नही ख़ुद को कोसों नही।
खुद से नफ़रत कभी ना किया कीजिये।
जिंदगी है हंसीं है ये दुनिया हंसीं।
इसको जन्नत के माफ़िक जिया कीजिये।
हर किसी के जनम में है मक़सद छुपा।
फ़र्ज पूरे सनम बावफ़ा कीजिये।
नाम रोशन रहे जिससे माँ बाप का।
काम ऐसे हमेशा किया कीजिये।
ज़िन्दगी इक डगर है गुलों खार की।
सुष, मगर इसको जी भर जिया कीजिये।
सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)