सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
जीवमात्र से प्रेम करना चाहिए - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
सोमवार, सितंबर 21, 2020
हम सब एक मात्र परमात्मा का ही अंश हैं, इसमें कोई दो राय नहीं। वह सत्य स्वरूप परमात्मा एक है, जिसे हम सभी अलग-अलग नामों से पुकारते हैं।
धरती, जल, वायु, आकाश हर जगह उसकी ही सत्ता है।
उसकी मर्जी के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिलता। वह कण-कण में विद्यमान है। हमारे भीतर भी हमारे बाहर भी।
हर पल हमारे साथ है वह।
आदि शंकराचार्य ने भी कहा है कि जब तक हम अपने आत्मस्वरूप में नहीं पहुंचते हैं, यह संसार दृष्टिगोचर होता है ।जैसे ही मैं अपने स्वरूप में पहुंचते हैं यह संसार रूपी स्वप्न खो जाता है।
यदि कुछ रह जाता है तो वह है सर्व व्यापक परम ब्रम्ह।
धरती जल आकाश वायु हर जगह परमात्मा की सत्ता है।
सच तो यह है कि हम सभी परमात्मा के अंश हैं और परमात्मा से जुदा कदापि नहीं रह सकते।
यह अंश भी समाप्त हो जाता है, परमात्मा में विलीन हो जाता है, और केवल रह जाता है परमात्मा।
ईश्वर अंश जीव अविनाशी, अर्थात संसार का हर जीव ईश्वर का ही अंश है यहां हर जीव में ईश्वर का अंश व्याप्त है, लेकिन मनुष्य परमात्मा की वह अद्भुत रचना है जो अपनी क्षमताओं को जागृत करता हुआ अपने उसी को प्राप्त कर सकता है।
इसके लिए परमात्मा ने उसे विशेष रूप से तैयार किया है।यदि कोई मनुष्य अपनी क्षमताओं को जागृत करता हुआ अंतिम लक्ष्य तक पहुँच जाता है तो उसके समान संसार में कोई नहीं।
परमात्मा और प्रकृति दोनों ने समभाव से मिलकर एकाकार होते हुए जीव की उत्पत्ति की है। दोनों ही एक नया अस्तित्व छोड़ते हैं वहीं जीव है।
इसलिए संसार का हर कार्य करते हुए, संसार का हर सुख दुख, हर सुख-सुविधा का आनंद लेते हुए हमें परमपिता परमात्मा को कभी नहीं भूलना चाहिए।
जब अचानक हम किसी तकलीफ, चोट, दर्द में आते हैं तो हमारे अंदर बैठा परमात्मा हमें अपनी याद दिलाता है क्योंकि हम तुरन्त स्वतः ही परमात्मा की याद कर गुहार करने लग जाते हैं, परमात्मा ही हमारी जीव आत्मा में बैठा हुआ है, वही हमको सुलाता है, जगाता है हमको सुख दुख से अनुभव करवाता है, हमारे सारे कर्मों को करवा रहा है, हमारी बुद्धि, मन सारी इंद्रियां, हाथ-पैर, नाक, कान, आँख आदि उसके द्वारा ही चलायमन हैं, कार्य कर रहे हैं।
परंतु जिस प्रकार मेहंदी के पत्ते की लाली हमें दिखाई नहीं देती उसी प्रकार हमारे शरीर में छुपा परमात्मा हमको दिखाई नहीं देता।
हम हँसते, रोते, बोलते सब उसके ही द्वारा है, यह सारी क्षमता हमें वह परमात्मा ही देता है।
तो कहने का तात्पर्य यह है कि हम सभी एक ही ईश्वर के अंश हैं अर्थात प्राणी मात्र में परमात्मा विद्यमान है तो क्यों ना ईश्वर के अंश जीव मात्र से बस प्रेम किया जाए, बस प्रेम किया जाए।
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