मुझको गिराने में वो हर बार फिसलते हैं
बे-शक मिलो तुम उनसे जिनकी ज़बाँ है कड़वी
बचो उनसे जो कानों में ज़हर उगलते हैं
देती है सुकून आख़िर मेरी ही मोहब्बत
आज भी दिल जब हसीनाओं के मचलते हैं
सैलाब उमड़ पड़ता है आँखों से अश्कों का
जब दर्द देने वाले इस दिल में मिलते हैं
चाहो तुम चाहे कितनी ही शिद्दत से मगर
बदलने वाले आशिक़ फिर भी बदलते हैं
आलोक कौशिक - बेगूसराय (बिहार)