संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
पाशविकता - गीत - संजय राजभर "समित"
बुधवार, सितंबर 30, 2020
नोंच-नोंच कर लूट लिए हैं,
फिर एक अबला की जवानी।
भीगी पलकें सुना रही हैं,
एक अनकही मौन कहानी।
छटपटायी हूँ रातभर मैं,
रौंदी गई हूँ दरिंदों से।
क्यों धर्म की चादर ओढ़ के,
खेल रहे हैं उम्मीदों से।
फटे-चिथड़े लट बिखरे हुए,
सभी वहशीपन के निशानी।
भीगी पलकें सुना रही हैं,
एक अनकही मौन कहानी।
कुरआन गीता बाइबिल की,
रो-रो देती रही दुहाई।
भाई-बाप बनाया सबको,
पर रिश्तें भी काम न आई ।
बिकी हुई है न्याय प्रणाली,
पढ़ मेरे बदन पर जुबानी।
भीगी पलकें सुना रही हैं,
एक अनकही मौन कहानी।
कौन सगा है कौन पराया?
सब हैं मेरे तन के प्यासे।
बच्ची से लेकर बूढ़ी तक,
अटक रही है सबकी साँसे।
जानवरों के जैसे बर्बर,
ये करते हैं शाम सुहानी।
भीगी पलकें सुना रही हैं,
एक अनकही मौन कहानी।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर