बेरोज़गारी - कविता - डॉ. राजकुमारी

पीठ पर बेरोज़गारी का फोड़ा निकला
धेर जगह मवाद लिए दिनो दिन बढ़ रहा है
ये आहिस्ता-आहिस्ता कुलमुलाने लगेगी,
देखना, पीड़ा फिर अत्यधिक विस्तार लेगी।

हाथ खाली थालियों का कानफॉडू
तब दिंगितो मेंअसहनीय शोर होगा,
अशिक्षित, बेरोजगार, भूखे, नंगे, गुंडों, 
लुटेरों, हत्यारों का आगामी दौर होगा।।

सोचोगे यदि तो, गुप्त अजेंडो में प्लान
तुम्हारी बर्बादियों के खूब छिपे पाओगे
मुट्ठी भर दानों को भी तरस जाओगे,
संक्षेप में कहूं, दास बना दिए जाओगे।

एक तबका कब का ख़तम हो चुका
आर्थिक सम्पन्न, अब लूट लिए जाओगे
डाके अकाऊंटों पर हैकर्स के पड़ रहें
संचित पूंजी उड़ाकर, खदेड़ दिए जाओगे

व्यवसाय डूब चुके,लोग मानसिक बीमार
डूबते जहाजों के कहो! कौन कर्णधार हैं?
सन्नाटों में प्रलय के अनसुने दबे हुए शोर हैं
भविष्य में हताशा, निराशा, अंधेरे घनघोर हैं

डॉ. राजकुमारी - नई दिल्ली

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