सूर्य मणि दूबे "सूर्य" - गोण्डा (उत्तर प्रदेश)
हाँ, हूँ मै मिडिल क्लास - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
मंगलवार, सितंबर 22, 2020
चप्पल में जोड़ कई
कपड़े में छेद चार हैं
मोची और रफूगीर का
हमसे चलता संसार है।।
मिडिल क्लास जानता है
एसी से नुकसान हैं
बस पहियों का फर्क है
फटफटिया में ही शान है।।
बीबियों के शौक फिर भी
छूते आसमान हैं
सेकेंड हैंड चार चक्का
और ज्वेलरियों अरमान हैं।।
बहुत खुश होते हैं
महंगे रेस्टोरेंट में जाकर
शतरंज की चाल की तरह
सोंचते है मेन्यू पर नजर गडाकर ,
दो सैंडविच खाकर बहुत पछताते
ब्रेड के बीच सब्जियां रख
सस्ते में घर पर खाते।।
आलीशान महल तो नहीं
पर सपनों का महल बनाते है
कर्ज के बोझ के बदले
कुछ ईंट चुनकर लाते हैं।।
रोज गिनते हैं हिंसाब लगाते
कितना कमाकर कितना बचाते
'सूर्य' सपनें बेचकर, सपने कमाते
मिडिल क्लास की यही फितरत है,
हाँ हूँ मै मिडिल क्लास
मेरी किस्मत अब आदत है।।
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