सुकुन देती हैं,
अपनी परछाई देखना
परछाई से बातें करना ।
कुछ बातें…
जो हमारे दिमाग में होती है ,
दिल कहने नहीं देता ।
कुछ बातें …
हमारे दिल में होती है,
दिमाग कहने नहीं देता।
दिल-दिमाग की कसमकस में ,
कभी कभी वो बातें ,
हम अपनी परछाई से कर लेते हैं ।
मुझे सुकुन देता है ,
अपनी परछाई से,
बतियाना….
बहुत सारी बातें
मैं करना चाहती हूँ साझा ,
दुनिया से ।
किसी अजीज से !
पर कर नहीं सकती ,
मुझे डर लगता है ।
मैं डरपोक हूं ।
मैं दुनिया की तरह नहीं सोचती ।
वो हर हाल में मुझे ग़लत समझेगी ।
कुछ बातें मुझे कमजोर
कुछ बातें मुझे पागल बनाती है,
कुछ बातें दिवाना ।
मुझे डर नहीं लगता
दुनिया मुझे पागल, दिवाना , कमजोर समझे।
फिर भी मैं डरपोक हूँ ।
मुझे पसंद नहीं …
दुनिया में ,
पागल, कमजोर,दिवाना कहलाना ।
मुझे पसंद नहीं
ये दुनिया ,
मेरे नाम के अलावा
किसी और नाम से पुकारे ।
मुझे नाम , पहचान से डर लगने लगाना है ।
नाम देकर ,छिन लेती है ये दुनिया आजादी ।
मैं बेटी हूँ ,
पहले ही समाज ने नाम देकर ,
जकड़ा रखा है मुझे बेडीयों में ।
प्रियंका चौधरी परलीका - परलीका, नोहर, हनुमानगढ़ (राजस्थान)