असीमित और चिरस्थाई सुख।
न कोई चुराए न हीं कोई छीने,
आनंदविभोर करे मन का सुख।
आत्मीयता पाने की चाह सुख,
आँख मिचौली सदा खेले सुख।
सुख दुःख का मिश्रण है जीवन,
उम्मीदों में निहित रहता है सुख।
क्षणिक सुख होता धन वैभव का,
अपराधी वो मानसिक शांति का।
विलुप्त होने का रहे संशय मन में,
नींद दूर हो जाए सदा आँखों का।
दौलत जो दरार बढ़ा दे रिश्तों का,
दूर कर दे जो प्रेम भाई-बहनों का।
ऐसा भी सुख क्या जीवन का सुख,
बंटवारा कर दे जो घर आँगन का।
सन्यासी दर दर भटक के ढूंढे सुख,
लौकिक छोड़ अलौकिक का सुख।
सुख ढूंढते वो भटकते मृगतृष्णा में,
जो मिला संतुष्ट हो कर पाओ सुख।
सुनीता रानी राठौर - ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)