बात कहूँ या तानों की बरसात हुई
तू है बहुत कठोर, कहा जब फूलों ने
साथ दिया फूलों का तीखे शूलों ने
पत्थर की पीड़ा से दोनों अनजाने
पत्थर ने पत्थर बन खूब सुने ताने
हम खुशबू देकर महकाते गाँव -शहर
तू राहों में पड़ा, सदा रहता बेघर
हम से दुनिया सुंदर हार बनाती है
डाल गले में खिल-खिल कर इतराती है
खूब कहा पर उत्तर कोई नहीं मिला
फूलों ने समझा पत्थर की मात हुई
इक दिन फूलों से पत्थर की बात हुई
सुना गौर से, पत्थर मन में मुस्काया
दर्द हुआ पर तनिक नहीं गुस्सा आया
बोला फूलों सुन लो, मन की बात जरा
बाग़ नहीं बस मेरा, घर है सकल धरा
ऊँचे भवन अटारी मुझसे सजते हैं
मुझे परखते है घन, टक-टक बजते है
मैं दुख सह कर औरों को सुख देता हूँ
बदले में केवल ताड़ना ही लेता हूँ
मुकुट नहीं, मुझको आधार सुहाता है
मेरा तन तो काम नींव के आता है
सबक कहाती है, पथ में मेरी ठोकर
सदा पाँव के लिए ज्ञान की बात हुई
इक दिन फूलों से पत्थर की बात हुई।।।।
ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)