कोरोना की आर्थिक मार - कविता - महेश "अनजाना"

कोरोना महामारी ने
आर्थिक मंदी की
बना दी है जमीन।
व्यवस्था ने रेत में
मुँह धंसा दिया है।
उसके लिए तूफ़ान
गुजर चुका है।
इसलिए तो
सत्ता पाने के लिए
दोबारा चुनाव को
राजी हो गया है।
तेज तूफानी हवाओं ने
सब कुछ उड़ा दिया है।
वैचारिक संकीर्णता
कायम ही नहीं रही
अधिक हिंसक हो गई है।
मानव इतिहास की
तीव्रतम मंदी के रूप में
आर्थिक मंदी
दस्तक दे रही है।
मानव बने हैं
महाजनी रथ के पहिए
मंदी की चक्की
पीसने के लिए।

महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos