अरुण ठाकर "ज़िन्दगी" - जयपुर (राजस्थान)
विकृत मानसिकता - कविता - अरुण ठाकर "ज़िन्दगी"
सोमवार, सितंबर 21, 2020
तमाशा बना रखा
कुछ सिरफ़िरे
ना फ़रमान
लोकतंत्र के हत्यारों ने।
अपनी मन मर्ज़ी,
थोपना, मनवाना,
अपने किरदार में,
इस कदर शामिल
कर रखा है।
जैसे जन्म से ही उन्हें मिले हो ये अधिकार।
कर्ण के कुंडल कवच
के समान।
जैसे उन्हें पैदा होते ही
महत्वकांशी दुर्योधन
की विरासत का
वरदान मिला हो।
ये निश्चित ही ऐसी
विकृत मानसिकता की
बीमारी का लक्षण है।
जो स्वम् के विनाश के
साथ साथ, समाज व
देश के हित में नहीं।
इस तरह की मानसिकता
का ना तो कोई उपाय है।
ना ही कोई आस्पताल जहाँ,
इसका इलाज हो सके।
समाज व देश में ऐसी धारणा
का वर्चस्व इस कदर बढ़ता जा रहा है।
जिसकी रोकथाम कैसे व किस प्रकार हो
यह एक ज्वलंत सवाल है।
मानव की प्रवर्ति, या महत्वाकांशी रावण की
अभिलाषाओं का विस्तार कहे।
अधिक ताकत, राजनीतिक बल,
भौतिक सुखों की लालसा,
अहंकार की क्रूरता का ये कौनसा मापदंड है।
एक सामान्य व आम
समाज व देश के व्यक्ति को
हमेशा चुनोतिपूर्ण परिस्थितियो से गुजरना होता है।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर