डॉ. अवधेश कुमार अवध - गुवाहाटी (असम)
लाल-लाल लट्टू नचाने वाला - आलेख - डॉ. अवधेश कुमार अवध
शनिवार, अक्टूबर 03, 2020
वक्त के साथ जमाना बदला और बदल गए बच्चों के सारे खेल भी। गुल्ली डंडा, आँख मिचौली, लट्टू नचाने से होते हुए विडियो गेम को पार कर जानलेवा मोबाइल गेम तक आ गए हैं हम। न केवल खेलों का स्वरूप बदला है बल्कि समाज के स्वरूप में भी आमूल चूल परिवर्तन आया है। मनोरंजन, संगीत, कला और साहित्य सब बदले हैं। जिस साहित्य को समाज का आईना होना है वह भी समाज से नाता तोड़ता हुआ सा देखा जा सकता है। आँखों पर गांधारी वाली पट्टी बाँधे दिशाहीन दौड़ रहा है।
साहित्य की अन्य विधाओं को छोड़ भी दें तो कविता और उसको पढ़ते मुखर कवियों का असर फौरन पड़ता है समाज पर। महाकवि चंदबरदाई ने "चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, अब न चूक चौहान," ने पल भर में क्रूर परिस्थिति को अपने अनुकूलकर दिया। श्रृंगार के महाकवि बिहारी का दोहा, "नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं पराग इह काल, अली कली ही सौं बध्यो, आगे कौन हवाल," ने राज्य की तकदीर बदल दी। गोस्वामी तुलसी दास के राम-भरत मिलाप प्रसंग के गायन ने शक्ति सिंह का हृदय बदल दिया। संत कबीर, महाकवि भूषण, रहीम, माखन लाल चतुर्वेदी, दिनकर, वंकिम चन्द्र चटर्जी, बिस्मिल, सुभद्रा कुमारी चौहान और श्यामनारायण पांडेय, रामनरेश, निराला जैसे कवि समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन करने में सक्षम थे। अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध क्रांति में " इंकलाब-जिंदाबाद", बंदे-मातरम", "सर फरोशी की तमन्ना", "लाल- लाल लट्टू" आदि कविताओं/नारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आजादी से पूर्व कवियों का निर्विवाद सर्वप्रमुख कर्त्तव्य सत्ता के विरोध को प्रबल करके सत्ता को नास्ति ना बूँद करना था। 1947 में यह सफलता भी हाथ लगी और उसके बाद अपनी सरकार गठित करने का अधिकार मिला। लेकिन अधिकांश कवि शोषक सरकार और अपनी सरकार में भेद ही नहीं कर पाये। कदाचित इसमें सत्ता की अंग्रेजियत भी आड़े आई हो। तभी तो कोई शायर मजबूर होकर कहा होगा कि, "तब्दीलियाँ हो गई हैं कुछ इंकलाब से, कुछ नाम हट गए हैं पुरानी किताब से," अर्थात् कवियों ने कुछ बड़ा परिवर्तन होते नहीं देखा। इसलिए कवि अपने पुराने काम में लगे रहे, संघर्ष करते रहे। कुछ चालीसा लिखने वाले सरकारी मेहमान खाने पर कब्जा जमाये रहे। इन सबके बावजूद भी कवियों को व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। सत्ता को सही मार्गदर्शन देना चाहिए। यह नहीं भूलना चाहिए कि अब कि सरकारें लोकतन्त्रात्मक प्रणाली से हमारे द्वारा चुनी जाती हैं। हम उसके अंश होते हैं। उनको सही राह दिखाना हमारा दायित्व है। गलत का विरोध और सही के समर्थन के लिए भी कवियों को सदैव लेखनी लेकर तैयार रहना चाहिए।
फिरंगी हुक्मरानों को चुनौती देते हुए किसी कवि ने कहा था कि, "लाल लाल लट्टू नचाने वाला कौन है, धरती माता सो गई, जगाने वाला कौन है।" इस कविता का इतना असर हुआ कि छोटे छोटे बच्चे भी लाल लाल लट्टू में अंग्रेजों की छवि देखकर उनको नचाते थे। अब समय बदल गया है। देश की आवश्यकताएँ और अपेक्षाएँ बदल गई हैं। इक्कीसवीं सदी का पाँचवाँ भाग बीत चुका है। कवि लोग "जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान" को ध्यान में रखकर सोये देश को जगायें और विकास के पथ पर सरपट दौड़ने में मदद करें।
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