कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
चलो जीना सीखें - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
गुरुवार, अक्टूबर 15, 2020
चलो जीना सीखें उन्हीं से
झुर्रियों भरे गालों से
अधपके बालों से,
अनुशासन के अनुभवों से
चलो जीना सीखें उन्हीं से।
ये खूबसूरत सांझ
ढ़ली कैसे?
आओ मिल पूछे जरा,
बरगदी लताओं मे
पुष्प खिले कैसे?
चलो बुजुर्ग बरगदी
छाया में अब
अनुभवों से मुट्ठीयां भर लें,
चलो जीना फिर से सीख लें।
चलो जीना एक बार तो जान लें
दादा दादी, नाना नानी के
उम्र के उस तगाजे से,
अंततः वो ढ़ले कैसे?
आओ कल जीना सीखें उन्हीं से।
कहानियाँ बेजान हो गई
संवाद करें कैसे?
किरदार छोटे-बड़ों का
हम निभाएं कैसे?
एक सांझ तो बैठो जरा
करीब आ के,
चलो जीना एकबार
तुम्हीं से सीख लें।
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