दीक्षा - रोहतक (हरियाणा)
खुद को ही पाया - कविता - दीक्षा
सोमवार, अक्टूबर 05, 2020
उसके जिंदगी में आने से पहले
मेरी रातें कुछ यूँ कटती थी
किताबें, गाने और खुद में ही
मेरी सारी दुनियां बसती थी
इन चीजों से दूर एक बार एक यार मिला
बहुत मुश्किल से, मैंने उस पर यकीन किया
अब रातें अकेले बैठकर नहीं, बातों में गुजरने लगी
जिंदगी थोड़ी सी हसीन लगने लगी
उसने वैसे तो मुझे बहुत ही आजमाया
पर मैं तो शुरू से ही निक्कमी हूँ
मैंने भी उसके लिए सब कुछ कर दिखाया
उसकी बेवकूफियां हँसने की वजह
और नादानियां गुस्से का कारण बनने लगी
वो सिर्फ दोस्त ही तो थीपर फिर भी
छोटी सी दुनियां में बहुत खास लगने लगी
उसके साथ दिन कुछ इतने हसीन थे कि
अल्फाजों में क्या ही बयां करूं
हर पल इतना खूबसूरत था कि मैं तो
आँखो देखी भी ना कह सकी
पर हर बार की तरह एक मोड़ आया
उसने भी अपनी औकात और रंग दिखाया
मुझे वही यार थोड़ा दूर, और थोड़े समय में
नज़र ही नहीं आया
फिर क्या हुआ? यार ही तो था
ऐसा सोच कर मैंने उसे भुलाया
पुरानी जिंदगी ने मुझे बुलाया
मैंने आखिर में फिर से खुद को ही पाया।
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