परमार प्रकाश - रानीवाड़ा, जालोर (राजस्थान)
लफ्ज़ हर लफ्ज़ जो - कविता - परमार प्रकाश
गुरुवार, अक्टूबर 15, 2020
लफ्ज़ हर लफ्ज़ जो
दिल को छू जाता है
वो मुहब्बत की बात
कर लो तुम यारा...
जिसके सर पर न हो
माँ-बाप का सहारा
उसे न तुम होने दो
कभी भी बेसहारा।
देखता है खुदा सबको
खुदा को किधर देख रहे?
हवायें जिधर चलती है
क्यों तुम उधर देख रहे?
खुदा का है सिर्फ यह
ठिकाना दिल हमारा।
रहमते है जब उसकी तो
क्यों नहीं बाँट रहे सबको
असहाय दिख नहीं रहे
दौलत दे रहे हो रब को
रब ने ही दिया है सब
यह धन जो है तुम्हारा।
मंजिले पा लेता है पर
जो जमीर छोड़ता नहीं
अपनी संस्कृति से मुख
कभी जो मोड़ता नहीं।
वही तो हर शख्स मिटाता
मुफ़लिस का अँधियारा।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर