उमाशंकर राव "उरेंदु" - देवघर बैद्यनाथधाम (झारखंड)
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मेरी प्रार्थना सुन माँ दुर्गे - कविता - उमाशंकर राव "उरेंदु"
मेरी प्रार्थना सुन माँ दुर्गे - कविता - उमाशंकर राव "उरेंदु"
सोमवार, अक्टूबर 26, 2020
हे माँ दुर्गे!
मैं क्या मांगूअपने लिए?
मैं क्या कहूँ तुमसे
कि मुझे यह दो, मुझे वह दो
यह जीवन तुम्हारा ही दान है।
मैं तो यही मांगूगा
कि तुम उस चूल्हे में आग देना
जो जला नही है हफ्तों महीनों से
ठीक तरह से जाकर देखना उसकी भूख
उस छप्पर के नीचे जाना तुम
जिनके लिए बरसात अभिशाप बन जाता है।
आखिर कब दोगी तुम उसे छत
उस आँगन को किलकारी देना
जिनकी गोद अभी खाली है
जिन्हें बांझ कहकर प्रताड़ित करता है समाज
उनकी सुनना तुम ।
जो सो रहे हैं
पीढी दर पीढी
फुटपाथ पर
उसे देना तुम आसरा
नीड़ देना
देना तुम उसके घर जाकर खुशी
ताकि जान सके वह
कि त्योहार आया है उसके भी घर।
उन लड़कियों की ऑखों में उम्मीद देना
जिनके पिता उनके हाथ पीले होने की
जद्दोजहद में काट रहें हैं दिन
उसके घर भी जाना तुम
जिनका बेटा शहीद हो गया सीमा पर
उस माँ के ऑंसू धोकर आना तुम
खिलौने बनकर जाना
उन बच्चों के हाथों में
जिन्हें कभी नसीब नहीं हुआ है खिलौना
खेत खलिहान और किसानों के घर जाना
जिनकी गायें रम्भा रही हैं
बच्चे बिलख रहें भूखे
जिनकी पत्नियां दिन रात खींच रहीं है जीवन का मोट।
अपने मातृत्व को जगाना जाकर उन सब के पास
याद रखना माँ दुर्गे!
जाना बहुत जगह जाना अपनी कृपा के साथ तुम
मगर उसके पास मत जाना कभी
जो बेच रहे हैं ईमान
जो जला रहे हैं धरम
खून चूसकर बढा रहें है अपनी चर्बी
उन दरिंदों के पास मत जाना
जो देश का सौदा कर रहे हैं
पाखंड रच रहें हैं
अपने को श्रेष्ठ और दूसरों को दलित बताकर कर रहें हैं मानवता का नाश
और उसके पास भी मत जाना तुम
जो सपना बेच कर
अपना भविष्य सजा रहें हैं वर्तमान के साथ ।
जाना तुम इन सब को छोड़कर
निःसहाय, उपेक्षित और उन तमाम दलितों के घर
जो बंचित हैं सदियों से
मानवीयपूर्ण संवेदना का हक पाने से।
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