पूनम बागड़िया "पुनीत" - नई दिल्ली
ज़िन्दगी के पल - कविता - पूनम बागड़िया "पुनीत"
शनिवार, अक्टूबर 03, 2020
हाँ.. मुझे याद है, ज़िन्दगी से मैंने, दो पल चुराये थे
एक पल, जी भर हँसी, दूजे पल आँसू बहायें थे
वक़्त के पेड़ से लटका है, हर एक पल
जो टूट कर गिरा, बस उसी के साये थे
राहतें सुकूँ है, मेरे हिस्से, हर वो पल आये थे
जो कभी दर्द में डूबे, तो कभी होंठो पर मुस्काये थे
बन कर मेरी जीवन की अग्नि-परीक्षा
कभी मुझसे, तो कभी मेरे हौसलों से टकराये थे
अभी ज़िन्दगी के हर पल में जीना बाकी है
न सोच सिर्फ इसमें दर्द ही गहराये थे
अभी तो ज़िन्दगी, हम खुद बच्चे से लगते है
वक़्त-ऐ-दरख़्त के फल कच्चे से दिखते हैं
बन कर हँसी बिखरेंगे, लम्हात सभी, एक दिन
जो इस पल में, अपने गम सजाये थे
सिमटना बाकी है, खुशी का दामन में अभी
बेशक इस पल, मेरे हिस्से दर्द समाये थे..!
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