कुछ करना चाहूँ - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"

बालिका शिक्षा को समर्पित रचना

मैं अपनी उम्मीदों को पँख लगाकर ,
बहुत  ऊँची  उड़ान  भरना चाहूँ ।
इस अनमोल नारी (बालिका) जीवन में ,
मैं पढ़-लिखकर कुछ करना चाहूँ ।

मैं सारे बाधक बंधनों को तोड़कर ,
अपना स्वच्छंद जीवन जीना चाहूँ ।
अबला  से  सबला  बनकर रहूँ ,
मैं पढ़-लिखकर कुछ करना चाहूँ ।

मैं मेहनत के गहरे रंग जमाकर ,
अपनी योग्यताओं में मजबूत बन जाऊँ ।
नज़र नारी पर कोई ना उठ सकें ,
मैं पढ़-लिखकर कुछ करना चाहूँ ।

मैं हर बात में मोहताज़ न रहकर ,
स्व-विवेक  से  निर्णय  लेना चाहूँ ।
अपनी काबिलियत का लोहा मनवाऊँ ,
मैं पढ़-लिखकर कुछ करना चाहूँ ।

मैं अपने सोए हुएं ज़मीर को जगाकर ,
हर जरूरतमंद का सहारा बन जाऊँ ।
मुझे मनचाहा मुकाम मिल सकें ,
मैं पढ़-लिखकर कुछ करना चाहूँ ।

मैं जटिल काम करूँ आगे बढ़कर ,
इतनी मजबूत कर दूँ अपनी बाहूँ ।
"कल्याण" सब नर-नारी का कर  ,
मैं पढ़-लिखकर कुछ करना चाहूँ ।

कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)

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