कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)
मैं भारत का संविधान हूँ - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
गुरुवार, नवंबर 26, 2020
संविधान सभा के अथक प्रयासों से ,
मैं विश्व के विधानों का वितान हूँ ।
अच्छे शासन संचालन का ताना बाना ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
संसार की अच्छाइयों को थामें ,
मैं विस्तृत और महान हूँ ।
सुख शान्ति व अमन का पक्षधर ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
नीतिप्रद और कर्त्तव्य-परायण ,
मैं राष्ट्रनीति का अनुशासन हूँ ।
घायल हृदयों को सहलाता ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
क्रांतिकारियों के रक्त से सींचा ,
मैं आज़ाद भारत का बख़ान हूँ ।
बदत्तर हालातों से बाहर निकला ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
खेत खलिहान गाँव व चौपाल ,
कृषि-प्रधान देश की जान हूँ ।
सब नयनों के अश्रुओं को पोछता ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
इतिहास के गौरव में लिपटा ,
मैं भारतीय संस्कृति का ध्यान हूँ ।
आधुनिक भारत का भाग्य-विधाता ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
सबको बात रखने का हक देता ,
मैं दबे-कुचलों का स्वाभिमान हूँ ।
भीमराव की कलम से निकला ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
जगत् पटल पर धाक जमाता ,
मैं प्रगति-पथ का प्रावधान हूँ ।
मानवपन का अहसास कराता ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
वोट के बल शासक बना करता ,
मैं लोकतंत्र की पहचान हूँ ।
सबके सपनों को पूर्ण करता ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
मुझमें छुपा दीन-हीन का बल ,
मैं अपाहिजों का सम्मान हूँ ।
नर-नारी को समान समझता ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
धम्म-चक्र व अशोक स्तंभ संग ,
मैं राष्ट्र गौरव का गुणगान हूँ ।
सत्यमेव जयते के लिए दृढ़ ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
अंध मान्यताओं को शून्य मानकर ,
मैं ढोंग-पाखंड बिना विज्ञान हूँ ।
सबकी सोच को वैज्ञानिक बनाता ,
मै भारत का संविधान हूँ ।
धर्म-निरपेक्षता का आलम सजाएं ,
मैं हर मसले का समाधान हूँ ।
सफल जीवन की बुनियाद पर ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
समानता के अवसरों को बाँटता ,
मैं स्वतंत्रता का व्याख्यान हूँ ।
हर इंसान की आज़ाद श्वासें ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
मेहनत से बुलंदी को पाता ,
मैं हर पिछड़े का अरमान हूँ ।
अमीर गरीब की खाई पाटता ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
आज अमीर हाथों के शिकंजे में ,
मैं बना न्याय का संसाधन हूँ ।
नेताओं ने छलनी-छलनी किया ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
कुछ सिरफिरे मिटाने को आमादा ,
मैं झेल रहा आज अपमान यूँ ।
कभी सरेआम भी जल रहा ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
मेरे शत्रु शासन के गलियारों में ,
मैं कदम-कदम पर परेशान हूँ ।
आज क्षत-विक्षत हाल मेरा ,
मैं भारत का संविधान हूँ ।
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