प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)
पर! कोई बात नही - कविता - प्रवीन "पथिक"
सोमवार, नवंबर 02, 2020
वेदना जगी!
हृदय में वेदना जगी।
मार पड़ी!
ग़मों की मार पड़ी।
विरान हो गया;
सारा संसार।
फिर एक बार,
बारिश के थपेड़ों की झाड़ पड़ी।
सपनें टूटे!
पतझड़ के झड़ते;
पत्तों से सपनें टूटे।
डरानें लगी!
गहन तम सी,
निशा मुझे डरानें लगी।
छा गया आँखों में,
उनके खिले चेहरे।
फिर से एक बार,
उनकी याद मुझे सताने लगी।
क्या हुआ अमंगल!
कुछ याद नहीं।
कहाॅं खो गया वह पल;
पर; कोई बात नहीं!
अब तो
मेघ से घिरे नभ,
अश्रुजल करने लगे हैं।
खिले प्रसून,
सब झरने लगे हैं।
स्वप्न पराग,
भी बह चले हैं।
अतीत के उन राहों में,
सब साथ साथ चलने लगे हैं।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर