गणपत लाल उदय - अजमेर (राजस्थान)
परिंदे प्यार के - कविता - गणपत लाल उदय
मंगलवार, नवंबर 24, 2020
ऐसे पकडो़ ना हमें कोई
छल - कपट करके कोई।
फैलाओ मत जाल तुम
रखो ना पिंजरे में कैद तुम।।
क्यों चलते हो चाल कोई
उड़ने दो हमको शान वही।
हम प्यारे है सारे जहान के
और परिंदे है हम प्यार के।।
क्यों करते हो कोई ऐसा
कैदी को कैद में रखें जैसा।
उड़ने दो हमें अपनी उड़ान
भरने दो हमें ऊँची उडा़न।।
चूम लेने दो अम्बर, गगन
घूमने दो हमें सुख चैन अमन
हम प्यारे है सारे जहान के
और परिंदे है हम प्यार के।।
प्यार मिलेगा हमको जहाँ
आऐंगे-जाऐंगे उड़कर वहाँ।
प्यार जताओ बच्चों के जैसा
मत करो हम परिंदो से धौका।।
फिर रोजना आऐंगे हम वहाँ
चाहे तुम भी फिर रहो कहाँ।
हम तो प्यारे है सारे जहान के
और परिंदे है हम प्यार के।।
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