प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)
पश्चाताप - कविता - प्रवीन "पथिक"
बुधवार, नवंबर 25, 2020
हार गया मैं!
सोचता था ; ख़ुश रखूँगा,
अपनों को, संगी - साथियों को, अपरिचितों को।
सपना था
पूरा किया भी सपनों को,
पर! न कर पाया अपनों को।
पश्चाताप ;
एक घोर पश्चाताप होता है,
हर दिन, हर क्षण।
आँखें अश्रुपात करती हैं, पर
कह नहीं पाती ;
अपनी उद्वेलित भावनाओं को
जो क्षमा के लिए निरंतर आतुर रहती हैं।
साहस नहीं होता
कह सकूँ ;
अपने हृदयस्थ उमड़ते सागर को।
दिखा सकूँ ;
बारम्बार ;
निज वेदना, टीश औ दुःख को,
जो क्षण प्रतिक्षण कमजोर बनाते हैं।
हरता जाता मैं,
साहस, धैर्य औ जीवन से।
क्षमा चाहता हूँ,
अपनी गलतियों का।
न भी करें, तो कोई बात नहीं।
मैं समझ लूँगा,
मेरी गलती अक्षम्य है।
पर! एक बार
सिर्फ़ एक बार...
देख तो लें,
इस अभागे की अश्रुओं को
जिनमें मु़आफी की लाखों बूँदें,
समाहित है।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर