पवन गोयल - नई दिल्ली
शब-ए-ग़म - कविता - पवन गोयल
मंगलवार, नवंबर 03, 2020
तेरा हाथ क्या छूटा
तेरा साथ भी छूट गया
जो पाया था तेरे साथ से
वो मक़ाम भी अब छूट गया।।
इंसानियत पाई थी तेरे अक्ष से
दो कदम चल पाई थी अपने लक्ष्य से
जो घूंट जाम के पाये थे प्याले में
वो प्याला भी अब टूट गया।।
दर्पण भी अब डराता है
सपना भी अब सताता है
जब तेरे साथ बीते पल याद आते है
आँखों में पानी उतर आता है।।
कभी तुझको समझ ना पाई थी
ना जाने कैसी कठिनाई थी
क्यों खो बैठी हूँ मैं आज तुझे
तुझसे ही तो दुनिया बसाई थी।।
आलम ये कैसा बन आया
जो पाया था वो भी गंवाया
आज फूलों की खुशबू रूठ गई
कंचन काया भी टूट गई
दिल रूहानियत को खो चुका
आज फिर दिल रो चुका
जख्म सब नासूर हो चले
कौन कहे अब दिल मिले।।
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