कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)
उषा - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
मंगलवार, नवंबर 17, 2020
पक्षियों का मधुर कलरव, धरा हुई मगन,
मानो चूम रहे हो, धरती और गगन।
अंधकार को चीरती उषा की पहली किरण,
रेन-बसेरा छोड़ आए चिड़िया तितली हिरण।
अलसाएं पुष्प खुशबू बटोर खिल उठें,
बुलबुल तोता कोयल मोर बोल उठें।
मंदिर-मस्जिद गिरजों में आरती अजान चढ़ी,
निंद्रा छोड़ धरा संवर कर फिर जाग उठी।
इंसान आलस्य तज उत्साह से भर उठा,
अधूरा काम पूर्ण करने जोश में कर उठा।
चहूंओर मधुर स्वर-लहरिया गूँज उठी,
धरा नव-दुल्हन की तरह बन सज उठी।
मंद-मंद मनमोहक खुशगवार हवा चल पड़ी,
लाल-लाल चुनरिया ओढ़े पत्तियाँ खिल पड़ी।
पक्षियों का मधुर कलरव, धरा हुई मगन,
मानो चूम रहे हो, धरती और गगन।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर