कर्मवीर सिरोवा - झुंझुनू (राजस्थान)
बेमौल माज़ी - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
शुक्रवार, नवंबर 27, 2020
हम रोये बहुत, नैनों को ना सूखने दिया कभी,
इस काफ़िर दिल ने तुझकों ना भूलने दिया कभी।
शामों की सुर्ख़ फ़ज़ाओं में तुझसे मुख़ातिब हुआ कभी,
माहताब ने भी तिरे दूधिया अक्स को उतरने दिया कभी।
शबे-पहर तन्हाई ने अधपकी नींद से जगाया कभी,
रातों में तिरी सूरत ने बियाबाँ को भी चमकने दिया कभी।
गुजरती हर सर्द शब ने मुझे ना सोने दिया कभी,
टिमटिमाते तारों की लौ में ख़ुद को जलने दिया कभी।
नफ़स-ए-तिमिर में तू बन-संवर कर आती थी कभी,
बंजर दिल में तिरे बंसती ख़्वाब को बसने दिया कभी।
फक़त तिरा ही तसब्बुर रहा मेरे अन्तर्मन में कभी,
टपकते टेसूओं को खुरदरे गालों पर टहलने दिया कभी।
बेमौल रहा है अतीत के पन्नों में छिपा वो माज़ी कभी,
ख़ुदा ने मिरी पेशानी को तिरी नेमत से सजने दिया कभी।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर