डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली
दुर्गम है संघर्ष - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सोमवार, जनवरी 04, 2021
तजो दीन मन हीनता, स्वीकारो संघर्ष।
भाग्य भरोसे मत रहो, वरना हो अपकर्ष।।१।।
आएँगी बाधा विविध, तोड़ेंगे उत्साह।
संघर्षी साहस सहज, तभी सफल हो राह।।२।।
करे सत्य निर्भय सबल, संकल्पित हो ध्येय।
सहचारी संघर्ष का, धीर वीर सच गेय।।३।।
कर्म रथी बन सत्पथी, दुर्गम है संघर्ष।
भाग्य संग पुरुषार्थ भी, मिलकर हो उत्कर्ष।।४।।
ज्ञान नहीं साहित्य का, आलोचन उत्कर्ष।
दरबारी होते निपुण, बेच मान संघर्ष।।५।।
चाहत सम पर्वत शिखर, करे नहीं संघर्ष।
धीरज साहस आत्मबल, बिना नहीं उत्कर्ष।।६।।
जीवन भर संघर्ष में, जीवन बीता अम्ब।
नीर क्षीर ममता तले, बन सन्तति अवलम्ब।।७।।
बना छत्र बरगद पिता, सहा सतत संघर्ष।
सब कुछ अर्पण पूत को, शिक्षा पद उत्कर्ष।।८।।
चल जीवन के कँटिल रण, मति विवेक धनु बान।
कर्मवीर संघर्ष रथ, बढ़ो विजय अभियान।।९।।
सुख दुख जीवन तट युगल, जलधारा संघर्ष।
बाधा कुटिला राह से, मिले सत्य उत्कर्ष।।१०।।
मधुशाला संघर्ष का, तिक्त पान आनंद।
सृजन लोक नव जिंदगी, पुष्प पराग मकरन्द।।११।।
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