दिलशेर "दिल" - दतिया (मध्य प्रदेश)
सफ़र ज़रूरी है - ग़ज़ल - दिलशेर "दिल"
सोमवार, दिसंबर 28, 2020
हमारी राय शुमारी अगर ज़रूरी है
हमे भी मुल्क की रखनी खबर ज़रूरी है
हरा भरा हो अदब का चमन हमारा तो
हमारे घर में सुख़न का शजर ज़रूरी है
तबीब करता है चारा हमारे ज़ख्मों का
दवा के साथ दुआ भी मगर जरूरी है
कि नेक काम में आती हैं अड़चनें अक्सर,
बुलन्द हौसला रखना मगर ज़रूरी है।
मिरे नसीब में शब है अगर अँधेरी तो,
कभी तो रंज-ओ-अलम की सहर ज़रूरी है।
मैं इक जगह पे ही रुक जाऊं ग़ैर मुमकिन है,
किसी भी सम्त हो लेकिन सफ़र ज़रूरी है।
उसे ये कैसे बताऊँ सुकून-ए दिल के लिए,
है ख़ैरियत से वो ऐसी ख़बर ज़रूरी है।
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