याद रह रह के कोई मुझको आता है बहुत!
प्यार उसका मेरे दिल को तड़पाता है बहुत!
कह हवाओं से चरागों ने खुदकुशी कर ली,
अज़ाब-ए-तीरगी आके अब डराता है बहुत!
टूटकर जिस को कभी मैंने चाहा था बहुत,
नज़र से दूर वो दूर आज हो जाता है बहुत!
इश्क़ का यही अक्सर अंजाम हुआ साकी,
जीते जी आशिक़ को मार जाता है बहुत!
तमाम रात संग उसके ख्वाब-गाह में रहा,
खुली जो आंख वो ख़्वाब सताता है बहुत!
मोहम्मद मुमताज़ हसन - रिकाबगंज, टिकारी, गया (बिहार)