माँ!!
यश, अपयश कैसा?
मेरी प्राण बचा
मुझे पार लगा
तेरी बगिया की फूल नही
मज़बूत हथियार बनूँगी।
तात उदास मत बैठो
मुझे ताकत दो,
दहेज की आग में जलूँगी नही
अब प्रतिरोध होगा,
नारी का सम्मान होगा।
बस प्रसव होने दो।
संसृति और संस्कृति पर्याय मेरे,
फिर भी अनगिनत अन्याय घेरे,
अशक्तता का बिचार बदलेगा
भारत बदलेगा,
जिस दिन हर बच्ची का माँ-बाप बदलेगा।
हिम्मत बाँधेगा,
एक लक्ष्य साधेगा।
संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)