श्रवण निर्वाण - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)
एहसास - कविता - श्रवण निर्वाण
बुधवार, दिसंबर 02, 2020
यार! मुझे तो दूर तक जाना था तेरे साथ
मेरा अन्तर्मन टूट गया, क्यों छुटा साथ।
शेष रह गई बहुत सी मेरे मन की बातें
कई बार कटती है, जागते हुए मेरी रातें।।
आज मेरी काया का रोम रोम है ख़ामोश
मैं कुछ कर पाता तो होता नहीं अफ़सोस।
समय के कुचक्र को मैं समझ नहीं पाया
मेरा कोई भी प्रयास सफल नहीं हो पाया।।
आ रहे हैं याद अब दिन जो साथ बिताये
कम नहीं कर पाया कष्ट जो तुम पर आये।
बेशक! ये दुनियाँ तो तुम्हें भूल ही जायेगी
पर मेरी आँखें वो तस्वीर भूल नहीं पायेगी।।
आये थे तो चलते तुम मीलों तक साथ मेरे
चले गये दूर, क्यों नहीं रोक पाये हाथ मेरे।
जीवन की यह दास्तां, मैं समझ नहीं पाया
कैसे बताऊँ तुम्हें, इस समय ने कैसे सताया।।
शेष है, मेरे जीवन की ये साँसें अभी भी
यादें मिट नहीं पाएगी, मेरे चित से कभी भी।
यार! यहाँ ही आना मेरे ही इर्दगिर्द फिर से
मेरे अन्तःकरण को वही एहसास हो फिर से।।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर