कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)
खट्टी मीठी बरस बीस की यादें - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
शुक्रवार, जनवरी 01, 2021
उत्तर दिशा से हवाएँ चली,
वुहान शहर को झकझोर के।
हाहाकार मची इस धरा पर,
मातमी मंज़र, दिन बुरे दौर के।
भयकारी आलम पसर गया,
मानव अपने घर में बंद हुआ।
एक-दूजे के बीच बनी दूरियाँ,
विश्वास निज हाथों का बंद हुआ।
कई महाशक्तियों घुटनों के बल,
कोरोना का तांडव हर देश में।
मानव हुआ लाचार कालचक्र से,
प्रकृति दे रहीं परिणाम इस वेश में।
जो जहाँ था, वहीं पर क़ैद हुआ,
अपनों से दूर वह बेकार हुआ।
कोसों फ़ासले पैदल ही चलकर,
घर वापसी को लाचार हुआ।
कुछ बीच राह में दम तोड़ गए,
भूखें प्यासे बुरे उनके हाल हुए।
बर्बरताई पुलिस की लाठी खाकर,
एक बार नहीं, सौ बार हलाल हुए।
दो वक़्त की रोजी रोटी छोड़,
कई जन सदा बेरोज़गार हुए।
अपना जीवन बचाने के लिए,
कारोबार छोड़कर निराधार हुए।
बे-मौत कई मौत के शिकार हुए,
दिल दहलाती बीस की ये बातें।
ताउम्र कोई ना भूल पाएगा,
खट्टी-मीठी बरस बीस की यादें।
नव वर्ष इक्कीस का आग़ाज़ हो,
संकट मिट सुख के दिन आए।
नए सूरज की नई किरण हो,
उमंग भरी खुशियाँ मन भाए।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर