कुछ ख़्वाब गढ़ने हो नये
तो त्याग होना चाहिए,
उसमें समर्पित भाव का
भी मर्म होना चाहिए,
जितने नयन मे ख़्वाब हैं
पूरे ही होने चाहिए,
नित ख्वाब जो पय बुल-बुलों मे
दृड़ संकल्प होना चाहिए,
कुछ ख़्वाब गर गढ़ने नये
सद्भाव दिल मे चाहिए,
पय ख़्वाब जो बुल-बुले हैं
नित त्याग होना चाहिए।
ड़ूबे नयन मे ख़्वाब जो
अब पूरे ही होने चाहिए।
कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)