एक मसीहा हुए जहां में
भीमराव जिनका था नाम।
सारी दुनिया करें नमन
कर गये वो ऐसे काम।।
था जब भेदभाव समाज में
तब की थी आपने पढाई।
फिर ज्ञान की तलवार उठा
क्या खूब कलम थी चलाई।।
संविधान दिया हमको
तुम जीना सीखा गए।
गुलामी की बेड़ियों से
आजाद हमें करा गए।।
महिलाओं को हक़ दिए सभी
हिन्दू कोड बिल लाए तुम।
बाबासाहेब मजलूमों के
थे दुःख दर्दों के साये तुम।।
बौद्ध धम्म अपनाकर तुम
पंचशील को अपना गए।
गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ने को
हमको मार्ग दिखा गए।।
किया वो उस मसीहा ने जिसे
कोई कर नहीं सकता।
बनते हैं हमदर्द बहुत मगर
दुःख कोई हर नहीं सकता।।
गूंगों को तुमने दी जुबान
नारी को दिया सम्मान।
तुम्हारे उत्कृष्ट कर्मों को
आज जन जन करें प्रणाम।।
हरदीप बौद्ध - बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)