पर्यावरण पर ध्यान धरो
कल की चिंता आज करो।
जीवन अपना तुम मानकर
जल को ना यूँ बर्बाद करो।।
अब वृक्ष लगाना शुरू करो
और हरा भरा सा बाग करो।
पेड़ों से जीवन सफल होता है
सब पेड़ों पर तुम नाज करो।।
मानव अब खूब बहक रहा है
हर वृक्ष बहुत दहक रहा है।
मनुष्य है पर्यावरण का जुल्मी
चिड़िया जैसा ये चहक रहा है।।
आग उगलता सूरज हम पर
सूख रही जड़ें हमारी जमीं पर।
बूँद बूँद पानी को तरस रही है
सूख गयी नदियां भी धरा पर।।
प्रकृति से बहुत खिलवाड़ किया
कंक्रीट का जंगल खड़ा किया।
धन दौलत खूब कमाकर सबने
धरती पर बहुत अत्याचार किया।।
हरा भरा खुशहाल था जीवन
फल फूलों से भरा था आँचल।
फिर से हरियाली लानी होगी
वृक्ष लगाकर जान बचानी होगी।।
हरदीप बौद्ध - बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)