मुकेश साहू - राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
रानी दुर्गावती की अमर गाथा - कविता - मुकेश साहू
गुरुवार, दिसंबर 24, 2020
हाथी पर सवार तू, बैरी की संहार की,
बन रण-चण्डी तू, तीर की बौछार की।
तलवार की धार, चमकी जब अंबर में,
सर-धड़ अलग हुई, धस गई धरातल में।
नारी तू नारायणी, गढ़मंडला की रानी थी,
गोंडवाना की शान बनकर, लिखी अपनी कहानी थी।
हार ना मानी मुगलों से, नारी तू स्वाभिमानी थी,
अपने ही घर में बैठे, बैरियों से अंजानी थी।
रानी की युद्ध कुशलता देख, काँप रहे थे अभिमानी,
उनके ही मंसबदार अब, कर रहे थे बेईमानी।
हार रही थी रानी सेना, पर हारा ना उनका मन,
बैरियों के बिच खड़ी, लड़ रही थी हुंकार भर।
तभी सामने से तीर आया और भेद गई आँख को,
तन से गिरी पवित्र लहू, स्नान करा रही धरातल को।
फिर भी रानी तीर निकाल, चली हराने हार को,
चंडी बनकर बड़ रही थी, तभी घेर लिया कल्यानी को।
घायल सी हो गई रानी, अब कैसे बचाते सम्मान,
लिए हाथ खंजर, कर गई सिने पर वार।
ऐसी नारी युगों-युगों में, जन्म लेते है धरती पर,
मातृभूमि की शान बनकर, अमर हो गई रणभूमि पर।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर