हो लाख दुःख जीवन मे,
चेहरे पर एक अभिनयित मुस्कान सजोनी है।
हर नए दिन की गिनती,
ढलती रात में खत्म कर,
ज़िन्दगी तो हर हाल में जीनी है।
कही दुःख रोजी रोटी का,
कही रिश्तो की पैबंद लगी चादर सीनी है।
समझोता, ख़्वाहिश, ज़िद, समझाईश
हो बेशक जीवन मे हर पल
पर ज़िंदगी तो हर हाल में जीनी है।
स्वयं से चल रहा एक अनवरत युद्ध है,
जीवन जैसे एक सागर हो विष का
जिसकी हर घूँट पीनी है।
सपने सारे टूट गए हो या अपने सारे छूट गए हो पर
ज़िंदगी तो हर हाल में जीनी है।
है सभी चेहरे पर चेहरे लिए यहाँ,
स्वार्थ ही परमार्थ सबका, यही हक़ीक़त जमीनी है।
स्वयं ही झुठलाते हक़ीक़त,
स्वयं ही चलते कल्पना पथ पर, पर
ज़िंदगी तो हर हाल में जीनी है।
अमित अग्रवाल - जयपुर (राजस्थान)