डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ३४) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
शुक्रवार, जनवरी 01, 2021
(३४)
जगपालक दिनमान, किरण पट अपना खोले।
लेकर लंबी साँस, सगर्वित होकर बोले।
बिहार की सरकार, घोषणा की थी जारी।
पूर्ण रूप अधिकार, जैक को दे दी सारी।।
अलग राज्य प्रस्ताव, हुआ था जिसदिन पारित।
विरह व्यथा रसधार, हुई बिहार में प्लावित।
इक-दूजे का साथ, बना चिरकाल सहारा।
अग्रज राज्य बिहार, झारखण्ड अनुज प्यारा।।
रूप लिया साकार, झारखण्ड राज्य जिसदिन।
गूँज उठी किलकार, पुण्य माटी पर उसदिन।
बजी ढमाढम ढोल, झाँझ मांदर सानाई।
घूँघट का पट खोल, प्रकृति रानी मुस्काई।।
झारखण्ड जोहार! नमन स्वागत अभिनंदन।
आल्हादित नर-नार, भक्ति सह गाए वंदन।
फिर क्या हुआ मिहिर? सविस्तार हमें बताओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।
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