सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सदाचारी को मिलता है सम्मान - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
सोमवार, फ़रवरी 01, 2021
यह नितांत सत्य है कि सदाचार ही मानवता है। परन्तु दुःख की बात यह है कि आज वातावरण बहुत दूषित हो गया है।
अनीश्वरवाद व हिंसा तथा गंदी फिल्में भी वातावरण से सदाचरण को लुप्त कर रही हैं। क्योंकि अच्छे चरित्र के निर्माण में वातावरण व संगति का बहुत प्रभाव पड़ता है।
सत्संगति अगर वृक्ष है तो सदाचार उसका फल।
इसलिए बुरी संगत की अपेक्षा अकेले रहना भी अच्छा है।
क्योंकि धन और स्वास्थ्य नष्ट होने से हानि कुछ ज़्यादा नहीं होती, मगर चरित्र बिगड़ जाने से सर्वस्व नष्ट हो जाता है।
अतः सदाचार मनुष्य के संपूर्ण गुणों का सार है जो उसके जीवन को सार्थकता प्रदान करता है एवम उसे समाज में आदर व सम्मान दिलाता है।
सदाचार मनुष्य का लक्षण है, सदाचरण को धारण करना मानवता को धारण करना है। सदाचार दो शब्दों से मिलकर बना है सत्य और आचरण।
सदाचार शब्द से सत्याचरण की ओर संकेत किया गया है।ऐसा आचरण जिसमें सब सत्य हो तनिक भी असत्य ना हो।
जिस व्यक्ति में सदाचार होता है उसे संसार में सम्मान अवश्य मिलता है। कोई आपकी सच्चाई व बुद्धिमत्ता के बारे में नहीं जान सकता जब तक आप अपने कार्यों से उदाहरण प्रस्तुत ना करें।
प्रत्येक परिवार तथा उसके सदस्य समाज का एक अंग है।
इस समाज में कुछ नियम और मर्यादा भी हैं। इन मर्यादाओं को पालन करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए किसी ने किसी सीमा तक आवश्यक होता है।
सत्य बोलना, चोरी ना करना, दूसरों का भला सोचना और करना, सबके साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार करना, स्त्रियों का सम्मान करना जैसे कुछ गुण हैं जो सदाचार के अंतर्गत आते हैं।
सदाचार का अर्थ यह है कि व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की स्वतंत्रता का अतिक्रमण किए बिना अपना गौरव बनाए रखें।
सदाचार का अर्थ है उत्तम आचरण।
सदाचार की चमक के आगे संसार की समस्त चमक फीकी पड़ जाती है। यह वो अनमोल हीरा है जिसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती।
ईसा मसीह, गुरु नानक, रविंद्र नाथ टैगोर, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, महात्मा गांधी के पास कोई दौलत नहीं थी फिर भी बादशाह थे। उनके पास सदाचार रूपी अनमोल हीरा था। जब तक वे जीवित थे उन्हें पूरे विश्व का सम्मान प्राप्त था। सदाचार के कारण ही वह मरकर भी अमर हो गए।
जहाँ सदाचार मनुष्य में समाज में सम्मान दिलाता है, वहीं दुराचारी घृणा का पात्र बन जाता है।
श्री राम जैसे सदाचारी का उदाहरण संसार में कोई दूसरा नहीं है।
जबकि रावण कुख्यात दुराचारी था। आज भी संसार उससे घृणा करता है और अपनी घृणा को अभिव्यक्त करने के लिए प्रतिवर्ष उसका पुतला फूँका जाता है।
सदाचारी में दया, धैर्य और अहिंसा जैसे गुण विद्यमान होते हैं। संसार में सदाचारी को सदैव सम्मान मिलता रहा है।
सदाचरण ही मानवता है।
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