डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली
मौन बयाँ करती कशिश - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
शुक्रवार, जनवरी 29, 2021
प्रमुदित होती दिलकशी, साजन प्रति अनुराग।
मौन बयाँ करती कशिश, दिल में जलती आग।।१।।
मदमाती तनु चारुतम, कामुकता उद्रेक।
प्रेम हृदय अहसास बन, कशिश नैन अतिरेक।।२।।
बड़ी वफ़ा है बेवफ़ा, कशिश नैन बरसात।
इन्तज़ार अहसास बन, प्रिया मिलन दिनरात।।३।।
अश्क इश्क का नूर है, मौन सदा इज़हार।
कहता सब दिल की कशिश, प्रीतमिलन उद्गार।।४।।
नैन नशीली मिलन ये, मनभावन नित नेह।
प्रबल धार रतिराग के, ख़्वाब कशिश बन गेह।।५।।
मान सरोवर प्रेम का, मिले मिलन पय क्षीर।
कशिश नैन अस्मित वदन, प्रिये! हंस मैं धीर।।६।।
बने चकोर पावस ऋतु, इन्तजार अभिसार।
कशिश चकोरी विरहिणी, चाहत प्रिय मनुहार।।७।।
तन्वी श्यामा चन्द्रिका, नैन नशीली धार।
बिम्बाधर अस्मित वदन, कशिश बनी तलवार।।८।।
रिमझिम रिमझिम वर्षिणी, दर्शन प्रिय घनश्याम।
उद्दामें भरती कशिश, मिल साजन सुखधाम।।९।।
अंठावन नवरंग कशिश, खिले शतक मधुमास।
सारोग्य रहे नवनीत बन, नवगीत रचें इतिहास।।१०।।
आकर्षण काया मृदुल, गजगामिनि पद चाल।
तुंग पयोधर चारुतम, सजनी गाल रसाल।।११।।
सजा महल प्रियतम मिलन, कशिश मनोहर प्रीत।
देख "निकुंज" पतझड़ हृदय, तरु पल्लव नवनीत।।१२।।
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