मोहम्मद मुमताज़ हसन - रिकाबगंज, टिकारी, गया (बिहार)
सियासत बाँटती रही मरहम - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
गुरुवार, जनवरी 21, 2021
हर बार रहनुमा तेरा झूटा निकला!
काग़ज़ काग़ज़ कोरा वादा निकला!
सियासत बाँटती रही मरहम मगर,
हर ज़ख्म अवाम का ताज़ा निकला!
निकल पाई जिसके दर पे आरज़ू,
उसकी गली से मिरा जनाज़ा निकला!
लोग समझ रहे थे हल जिसको,
वो आया तो मसअला निकला!
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