संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
अमावस की रात - गीत - संजय राजभर "समित"
बुधवार, जनवरी 13, 2021
पहले प्यार की पहली, अपनी मुलाक़ात थी।।
काली-काली भयावह! अमावस की रात थी।।
इंतज़ार की घड़ी में,
हर पल बेचैनी थी।
बस एक झलक के लिए,
नज़रें भी पैनी थी।
छू लेने की अहसास, ग़ज़ब सी वह बात थी ।
काली-काली भयावह! अमावस की रात थी।।
पायल, चूड़ी, व कंगन,
सारे सहज चुपचाप।
भींच कर लूँ आलिंगन,
मिट जाये देह ताप।
नेह की बाती में जल, रौशनी सौगात थी।
काली-काली भयावह! अमावस की रात थी।।
पावन अन्तर्मन साज,
बेतहाशा आ गयी।
उफनाई नदियों सी,
सागर में समा गयी।
सारे भव बंधन तोड़, मिलन की जज़्बात थी।
काली-काली भयावह! अमावस की रात थी।
मर्यादाएँ झकझोर,
सीमाएँ जता दिया।
यह सब नाजायज़ है,
चल रे! हट बता दिया।
जुगनुओं के जगमग में, वह समर्पित पात थी।
काली-काली भयावह! अमावस की रात थी।
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