रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)
बसंत - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
शुक्रवार, जनवरी 22, 2021
रुसवाई का
छोड़ो ख़्याल
री सजनी
बसंत ऋतु जो आयी।
मद मस्त सुगंध ले
आम बोराये
ली रब ने ली अंगड़ाई।
फूला काँस
फूल गए सरसों पलास।
डाल से गिरता
पात यूँ कहता
एक बात जो ख़ास।
जुदा हुए गर मेरे जैसे
तो ढूँढेगी
मिलने कि आस।
प्रिय रहो झूमती
गेंहू कि वालों जैसी
और मन की उडेलो हास।
कहीं छर छर मेघ बरसे,
कहीं धूप छाँव ने खेल मचायी,
रूषवायी का छोड़ो ख़्याल,
री सजनी बसंत ऋतु जो आयी।
देख खेत
फूली सरसो को
तेरी यादों ने
हमें दबोचा।
जब हेतु लगाया था
वर्षों दूर रहोगी
हमने कभी न सोचा
"ब" से बनी बात बिगड़े न
"स" से संग रहो चाहे
पड़े विपत्ति कितनी
"न" की बिंदी से झूठ मूठ न कहना
"त" तन हो दूर
पर मन मे
एक रहे साजन साजनी।
देख ऋतु
मन के विनोद ने
उकसाया।
सोयी यादें फिर टकरायी
री सजनी बसंत ऋतु जो आयी।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर