रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)
जय हनुमान - कविता - रमाकांत सोनी
शनिवार, जनवरी 16, 2021
रामायण की कहूँ कहानी,
राम भक्त हनुमान की,
जिनके हृदय में बसते हैं,
राघव माता जानकी।
भूख लगी हनुमत को जब,
जाकर माता को यूं बोले,
हलवा पूरी खाऊँगा माँ,
मधुर स्वर था होले होले।
तुम ठहरो स्नान करके,
मैं भोजन अभी बनाती हूँ,
स्वादिष्ट पकवान बनाकर,
हाथों से तुझे खिलाती हूँ।
अंत:पुर में माता ने फिर,
जाकर के स्नान किया,
रत्न जड़ित आभूषण पहने,
नाना फिर श्रृंगार किया।
सहज सरल हनुमत ने पूछा,
क्यों सिंदूर लगाया माताजी,
सिंदूर से स्वामी हो दीर्घायु,
प्रभु को सिंदूर लुभाता जी।
सुनकर राघव के प्यारे की,
आँखें हीरे सी चमक उठी,
प्रभु को आज खुश करने की,
उर में ज्वाला दहक उठी।
सिंदूर की एक रेखा से बस,
आयु रघुनंदन की बढ़ती,
तो सारा सिंदूर लीपने से,
दीर्घायु युगो युगो तक चढ़ती।
यह सोच केसरी नंदन ने,
श्रृंगार कक्ष में प्रवेश किया,
सिंदूर की डिबिया पटक डाली,
सारा शरीर पर लेप लिया।
भूख प्यास भूलाकर वो,
फिर भरी सभा में पहुँच गए,
आज प्रभु होंगे हर्षित,
राम दुलारे मन में कहे।
यह वेश देखकर दरबारी,
ख़ुद को फिर रोक नहीं पाए,
पूरा सभा मंडल गूंज उठा,
खुद रामचंद्र भी मुस्काए।
मधुर वाणी हरि अधरों से,
हनुमान हनुमान आने लगी,
राम भक्त के निश्छल प्रेम को,
पूरे सदन में दर्शाने लगी।
आज तुमने सिंदूर का लेप,
क्या सोच कर के किया,
सिंदूर से प्रभु प्रसन्न होते,
कहती है ये माता सिया।
ऐसा जानकर मैंने भी,
सिंदूर तन पर लगाया है,
मेरे राम होंगे हर्षित,
मन मेरा भी हर्षाया है।
कहे राम जी अब आगे से,
प्यारे भक्त तेरी ही बारी है,
जो तुझको सिंदूर चढ़ाएँ,
वह रामकृपा अधिकारी है।
तुमको अष्ट सिद्धि नव निधि,
राम रसायन औषध सारी।
मुझसे पहले जो पूजे तुमको,
उसकी होगी पूर्ण कामना सारी।
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