राम प्रसाद आर्य 'रमेश' - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)
माँ हूँ - कविता - राम प्रसाद आर्य 'रमेश'
बुधवार, जनवरी 20, 2021
सर्दी सता रही है बेटा,
आ, आँचल में छुप जा।
माँ हूँ, रो मत, ले तन ढक ले,
अब तो तू चुप जा।।
एक छोर निज सर ढक लूँ,
दूजे तेरे तन को।
माँ हूँ, तुझको देख दुखी,
कैसे सुख मेरे मन को।।
भूखी रह लूँगी पर तुझको,
भूखा नहिं रहने दूँगी।
माँ हूँ, हर दुःख ख़ुद सह लूँगी
पर तुझे न सहने दूँगी।।
माना बाप नहीं जीवित,
बन बाप तुझे पालूँगी।
माँ हूँ, तू है बेटा मेरा,
पग-पग तुझे संभालूँगी।।
माना बेरोज़ी, ग़रीब,
असहाय एक नारी मैं।
माँ हूँ, बस बल बेटा मेरा,
तो हर बल पर भारी मैं।।
सर्दी, गर्मी, ओला, वर्षा
ना तुझ पर पड़ने दूँगी।
माँ हूँ, स्वयं लड़ूँगी सबसे,
तुझे न लड़ने दूँगी।।
मज़दूरी, नौकरी, मिले जो,
हँस के मैं कर लूँगी।
माँ हूँ, हर ग़म, हर मुश्किल,
निज सर मैं धर लूँगी।।
ईश्वर ने जो दिया, उसी में
हमको खुश रहना है।
माँ हूँ, ममता ही मेरा बस,
एक अक्षय गहना है।।
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