डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)
मैं ममता हूँ (भाग १) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
गुरुवार, जनवरी 28, 2021
(१)
मम तजना आसान नहीं है कहती ममता।
मम का करे निदान नहीं मानव में क्षमता।
मम का बंधन डोर काटना अतिशय भारी।
मम ही मम चहुँ ओर बँधे मम से नर-नारी।
मम से होकर चूर मनुज अतिशय दुख पाए।
मम से मम को दूर रखे जो संत कहाए।
अस्तित्व संत को दिया कौन सोचा तुमने?
इस जग के जगत नियंता को पाला किसने?
राम, बुद्ध, यीशु, अतिवीर नानक पैगम्बर।
ममता के ख़ातिर जन्म लिए इस धरती पर।
सबने मेरे आँचल को ही हैं भिंगोए।
मेरे बिना खूब सिसक-सिसक कर हैं रोए।
मेरी पूजन किए बनाकर मुझसे दूरी।
आख़िर मम तजना उनसब की थी मजबूरी।
मैं तीनों लोकों में चिरकाल पूजिता हूँ।
सम्पूर्ण ब्रह्म ही मेरा है-'मैं ममता हूँ'।।
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