डॉ. कुमार विनोद - बांसडीह, बलिया (उत्तर प्रदेश)
ताजमहल मुस्कुराता है - कविता - डॉ. कुमार विनोद
शनिवार, जनवरी 23, 2021
कितनी बार देखा होगा
मुमताज़ की आँखों ने
सूरज को
किरणें उधार देते हुए पूनम के चाँद को।
महसूस किया होगा परमार्थ का स्वत्व, प्रणयानुभूति
और समर्पण
शाहजहाँ के प्रेम में
आबद्ध होने पर।
ग़ज़ब का समर्पण।
हुबहू अपनी कल्पना को
प्रेम के कैनवास पर साकार किया होगा,
तब कहीं जाकर अर्थहीन होने से बची होगी ज़िंदगी।
अमर हो गया प्रेम
हमेशा-हमेशा के लिए ताज में।
देखा होगा -
चाँदनी को छककर पीते हुए सूरज की तपन को।
इसी शीतलता में
परिवर्तित होकर ईषत प्रेम के स्रोतस्विनी बन।
जमुना इस अक्स को अपनी बाहों में समेटती है और पूनम का चाँद सतह पर तैरने लगता है
इसी शीतलता में ताजमहल जवाँ हो जाता है ।
तब पता नहीं कहाँ से
इसके अंदर दूधिया प्रकाश आ जाता है ।
सचमुच चाँद सूरज का
समर्पण
मुमताज़ की भावनाओं से
चिरयौवन बन कहीं न कहीं
पूर्णता से टकराता है
और चाँद दिन भर सूर्य का तपन पी-पीकर
तिनका-तिनका दर्द उठाता है
तब कहीं -
चाँदनी रात में ताजमहल मुस्कुराता है।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर